वह शहीद नहीं था
उसने कब कहा शहीद हूँ मैं फांसी का रस्सा चूमने से कुछ रोज पहले उसने तो केवल यही कहा था कि मुझसे बढ़ कौन होगा खुशकिस्मत मुझे नाज है अपने - आप पर अब तो बेहद बेताबी से अन्तिम परीक्षा कि है प्रतीक्षा मुझे कब कहा था उसने : मैं शहीद हूँ शाहिद तो उसे धरती ने कहा था सतलुज कि गवाही पर शहीद तो , पाँचों दरिया ने कहा था गंगा ने कहा था ब्रम्हपुत्र ने कहा था शहीद तो उसे वृक्षों के पत्तों पत्तों ने कहा था आप जो अब धरती से युद्धरत हो आप जो नदियों से युद्धरत हो आपके लिए बस दुआ ही मांग सकता हूँ कि बचाएँ आपको रब्ब धरती के शाप से नदियों कि बद्दुआ से वृक्षों की चीत्कार से --- सुरजीत पातर